गुरुदेव
माँ-सा हम सामान लेकर अपने कमरे में जा रहे है। अगर कोई कार्य हो तो आवाज़ लगा देना हम आ जाएंगे।
“ठीक है श्वेता!” श्वेता सामान उठा अंदर चली जाती है। रंजना घबराई हुई घर के अंदर जाती है और रसोई से एक गिलास पानी ले एक ही सांस में पूरा गटक जाती है। उसकी नजर वापस से हाथ में बंधी घड़ी पर जाती है जिसमें सात बजकर पन्द्रह मिनट हो रहे हैं। रसोई से निकल कर रंजना हॉल में पहुँचती है। उसके चेहरे पर चिंता और घबराहट थी। घर में कूलर की ठंडी हवा चलने के बाद भी उसके माथे पर पसीने की बूंदे टपकने लगती है। अपने कांपते हाथों से मोबाइल निकालती है और गुरुदेव का नम्बर लगा देती है। इस समय उसके जेहन में कई सवाल चल रहे होते है। कहीं कुछ अनर्थ न हो जाए। श्वेता आज पहली बार सात बजे के बाद घर के बाहर रही है। न जाने अब क्या घटित हो।
“हेल्लो! जय माता दी!” की आवाज़ के साथ ही रंजना अपनी सोच से बाहर निकलती है और अपने गुरुदेव को प्रणाम करती है।
“जय माता दी गुरुदेव! प्रणाम! हम रंजना बात कर रहे हैं।“
“हाँ! ... राजस्थान से..?”
“जी गुरुदेव!”
“बोलो बिटिया! क्या समस्या आ खड़ी हुई है जो इस समय याद किया! सब कुशल मंगल तो है?”
“गुरुदेव! अभी तक तो सब कुशल है। लेकिन आगे क्या होगा हमें नहीं पता? आपके निर्देश का पालन करने के बावजूद भी आज हमसे एक गलती हो गई। आज श्वेता सात बजे के बाद भी घर के बाहर ही रही है। हमारा मन अशांत हो रहा है गुरुदेव। इस के कारण हमारी बच्ची के साथ कुछ अनर्थ तो घटित नहीं होगा?”
“सर्वप्रथम शांत हो जाओ बिटिया! जो घटित होना था वो हो गया है। उसे बदला नहीं जा सकता। अब आप सर्वप्रथम ये देखे जाकर श्वेता इस समय क्या कर रही है अर्थात किस तरह का व्यवहार कर रही है। क्योंकि वो आत्मा जो श्वेता के स्वप्न में आकर उसे पुकारती है हर क्षण उसके आसपास ही रहती है। वो किसी श्राप के कारण ब्रह्म मुहूर्त से लेकर साँझ के सात बजे तक श्वेता के पास नहीं आ सकती न ही उस घर में प्रवेश कर सकती है क्योंकि उस घर के प्रत्येक कोने को मैंने स्वयं मंत्रो द्वारा अभिमंत्रित किया है। लेकिन ये सब तब तक ही कारगर है जब तक श्वेता अपने राजयोग से दूर है। उसे सब चीजो से दूर रखने के लिए ही मैंने कुछ उपाय बताए थे जिनमें शामिल था उसका सात बजे तक किसी भी हालात में घर में उपस्थित होना।“
रंजना की आवाज कांपने लगी थी “जी गुरुदेव! हम अभी जाकर देखते है! लेकिन गुरुदेव घर में जब वो आत्मा प्रवेश नहीं कर सकती है तो फिर श्वेता का व्यवहार बदला हुआ तो होगा नहीं। और फिर उसके गले में आपने अभिमंत्रित किया हुआ रुद्राक्ष भी तो पहन रखा है।“
“बेटी! ये सत्य कहा कि वो आत्मा घर के अंदर नहीं आ सकती। लेकिन अब वो आत्मा इतना कर सकती है कि अपनी दर्द भरी वेदना से श्वेता को कभी भी घर के बाहर बुला सकती है। क्योंकि जैसे-जैसे मेरी बनाई बाधाएं हटती जाएंगी वो आत्मा और ताकतवर होती जाएगी। और फिर उस ताकत से श्वेता को अपनी तरफ खींचने में कामयाब भी हो सकती है। बस अब तुम प्रयत्न करके श्वेता के राजयोग को मत जागने दो। उसकी कुंडली में जो मैंने पढ़ा है समझा है उसके हिसाब से ये किसी राजकुमारी का पुनर्जन्म है जो अपनी अधूरी कहानी को पूर्ण करने के लिए फिर से जन्मी है। इस जन्म में उसे अपना सदियों पुराना जन्म अवश्य याद आयेगा और जिस समय उसे याद आया उसका राजयोग प्रभावी हो जाएगा फिर हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पाएंगे। समझ गई बेटी?” गुरुदेव का स्वर सामान्य था लेकिन उसके पीछे छिपी चिंता झलक रही थी।
“जी गुरुदेव!” रंजना भी उनकी चिंता समझ रही थी। “ठीक रखता हूँ अब "जय माता दी" गुरुदेव ने फ़ोन रख दिया। "जय माता दी गुरुदेव, प्रणाम!” रंजना के बोलते-बोलते फ़ोन कट हो चुका था और रंजना दौड़ते हुए श्वेता के कक्ष में जाती है जहाँ श्वेता बेड पर बैठ कर अपना सामान व्यवस्थित कर रही होती है। नया खरीदा हुआ बैग उठाकर उसमें अपनी एक नोटबुक जमाती है और कुछ कलरफुल पेन, पेंसिल रखती है। साथ ही कुछ पुराने इकट्ठे किए हुए नक्शे एक छोटे से बॉक्स में सम्हाल कर रखती है और फिर उस बॉक्स को मुस्कुराते हुए अपने बैग में रखती है। रंजना दरवाजे की ओट में ही छिप कर खड़ी हो जाती है और श्वेता के व्यवहार पर नजर रखने लगती है। चेहरे पर चिंता के भाव होते है और मन में भगवान से प्रार्थना कि सब ठीक हो। कुछ भी अलग या बुरा न हो श्वेता के साथ।
श्वेता जो अभी हाल ही में मुस्कुराते हुए अपना सामान जमा रही होती है अचानक से चुप हो जाती है। और बेड से उतर कर खिड़की के पास जाकर खड़ी हो जाती है। जहाँ वो खिड़की खोल कर अपलक आसमान की ओर निहारने लगती है ऐसा करते समय श्वेता और कोई गतिविधि नहीं करती उसे देख ऐसा लगता है जैसे वो इस समय वहाँ मौजूद होकर भी नहीं है। और अचानक वो कुछ शब्द बुदबुदाने लगती है..
‘प्रिय शहजादे फरहान! यूँ तो हमें आपकी तरह शेरो शायरी नहीं आती लेकिन फिर भी हम राजकुमारी रत्ना अपने हृदय की बात चंद पंक्तियों में आपसे कहना चाहते हैं...
“काश! हमें भी आता हुनर यूँ आपकी तरह दिलो को चुराने का! ख्वाबों में आकर नींद से जगाने का, तो उस ईश्वर की कसम,जिस तरह आपने हमारा हृदय का चैन चुराया है, वैसे ही हम आपकी नींदें चुरा कर बैचेन होने पर मजबुर कर देते...”
श्वेता चांद को देख खुद से ही ये बाते करने लगती है जिसे सुन उसकी माँ-सा घबरा जाती है और दौड़कर श्वेता के पास जाकर उसे जोर से झकझोरती है...
“श्वेता! बेटा क्या कह रही है आप? किससे बातें कर रही हैं? श्वेता!” रंजना की आवाज़ सुन श्वेता पीछे मुड़ती है और कहती है “क्या हुआ माँ-सा? आप यहाँ? और आप इतनी घबराई हुई क्यों है?”
रंजना जिसका चेहरा पूरी तरह से पसीने से भीगा हुआ होता है श्वेता को नॉर्मल देख मुस्कुराते हुए अपना पसीना पोंछ लेती है और श्वेता से कहती है “कुछ नहीं बेटा वो हम यहाँ थोड़ा जल्दी में आए थे सीढ़ियां चढ़ते हुए,तो बस इसी वजह से थकान हो गई है।“
“ओह माँ-सा। हम नीचे बोल कर आए थे कि अगर कोई भी कार्य हो तो हमें आवाज़ लगा देना। लेकिन नहीं आपको तो सीढ़ियां चढ़ ऊपर आना है। जब पता है कि अक्सर आपके घुटनों में दर्द रहता है। अभी चढ़ कर आई है फिर उतर कर भी जाएंगी। यानी दुगुना पेन। क्यों माँ-सा! क्यों करती है आप ऐसा?” श्वेता मासूम-सा चेहरा बना कर अपनी माँ-सा से पूछती है। श्वेता की फ़िक्र देख रंजना भावुक हो जाती है। उसकी आँखें भर आती है और वो श्वेता से कहती है “बेटा! हमारी इतनी फ़िक्र करोगी तो हमें इसकी आदत लग जाएगी। और फिर इतनी दवाई खाती हूँ लेप तेल मालिश वगैरह करती ही रहती हूँ जिससे दर्द होता भी ही तो कुछ ही देर में छूमंतर भी हो जाता है।“ रंजना ये सोच कर ‘श्वेता हमारे यहाँ आने का कारण पूछे उससे पहले हम ही उसे कोई और कारण बता देते है’ श्वेता से कहती है, “देख बेटा! बातों ही बातों में हम तो यहाँ आने का कारण ही बताना भूल गए।“
“नीचे डायनिंग पर खाना ठंडा हो रहा है आप चलो हमारे साथ चल कर डिनर कर लीजिए। आपके बापू-सा और भाई-सा वहीं इंतजार कर रहे है।“
“ठीक है माँ-सा आप चलिए हम अभी आते है बस ये जो कुछ भी सामान बिखरा पड़ा है न बेड पर उसे समेट कर रख दे।“ कहते हुए श्वेता बेड पर से अपनी बुक्स और बैग उठा स्टडी टेबल पर रखने लगती है। श्वेता को ठीक देख रंजना जल्दी आने का कह नीचे चली आती है। और जल्दी जल्दी डिनर तैयार करने लगती है। श्वेता किसी भी समय आती ही होगी अगर उसे डिनर तैयार नहीं मिला और घर के बाकी सदस्य यहाँ नहीं मिले तो सौ प्रश्न करेगी। ये सोच जल्दी जल्दी हाथ चला पन्द्रह मिनट में ही सारा कार्य कर लेती है।
श्वेता हंसते मुस्कुराते गुनगुनाते हुए नीचे उतर कर आती है। ‘अभी श्वेता कितनी प्रसन्न है हमारी बेटी को किसी की नजर न लगे। बस ऐसे ही प्रसन्न हो कर सदा हंसती मुस्कुराती रहे।‘ रंजना, श्वेता को देख मन में ही उसकी बलाएं लेते हुए कहती है।
“माँ-सा! हम आ गए। आप भी आ जाइए!” डायनिंग पर बैठते हुए श्वेता कहती है।
रंजना भी वहाँ आ जाती है और बाकी सब को भी आने कर लिए कह वहीं बैठ घर के और सदस्यों का इंतजार करने लगती है।
श्वेता जो डायनिंग पर बैठी हुई होती है खिड़की से बाहर की तरफ देख रही होती है। एक हाथ उसने डायनिंग पर रख चेहरे को हाथ पर टिका रखा है। और दूसरे हाथ को अपने पैरों पर रख रखा है। आसमान में शुक्ल पक्ष की एकादशी का चांद निकल आता है जिसकी दूधिया रोशनी छत पर पड़े हुए जाल में से आती हुए उसके ऊपर पड़ती है। जिस कारण उसके हाथ में बना बर्थ मार्क शाइन करने लगता है। जिससे हॉल में एक सुनहरी आभा फैलती हुई प्रतीत होती है। रंजना जो घर के बाकी सदस्यों का इंतजार कर रही होती है ये सुनहरी रोशनी देख आश्चर्य में पड़ जाती है। और रोशनी का कारण जानने के लिए चारो ओर सरसरी नजर दौड़ाती है तो देखती है कि ये रोशनी श्वेता के पास से आ रही है। आज पहली बार उसका बर्थ मार्क इतना चमक रहा है जिसे देख रंजना कुछ गलत होने की आशंका से सहम जाती है। लेकिन गुरुदेव के आदेशानुसार हिम्मत कर वहीं बैठ श्वेता के हाव-भाव पर गौर करने लगती है।
अचानक से श्वेता खड़ी होती है और धीरे-धीरे खिड़की की तरफ बढ़ जाती है। रंजना, श्वेता को खड़ा देख उससे कहती है, “श्वेता बेटा! क्या हुआ आप खड़ी क्यों हो गई?” श्वेता जो मानो किसी सम्मोहन के जादू में बंधी हुई खिंचती चली जा रही है खिड़की के पास ही जाकर रुकती है। रंजना बदहवास सी श्वेता के पीछे पीछे जाती है और खिड़की के पास जाकर खड़ी हो जाती है और श्वेता को देखने लगती है। श्वेता को देख रंजना इतना तो समझ जाती है कि श्वेता व्यवहार बदलने लगा है।
श्वेता खिड़की पर खड़े हो मुस्कुरा कर हाथ हिलाने लगती है जैसे खिड़की के उस पार आसमान में कोई है जिसे श्वेता देख पा रही हो। और मुस्कुराते हुए खामोशी से उससे बातचीत कर रही हो।
‘हे भगवान! अब हम क्या करे हमारे इतना रोकने पर भी श्वेता खिंची चली जा रही है। क्या करे हम कैसे अपनी बेटी को कष्ट में पहुँचने से रोके।‘ रंजना मन ही मन खुद से ही बाते करते हुए कोई उपाय खोजने की कोशिश करती है। जब कुछ समझ नहीं आता है तो पास ही पड़े हुई टेबल पर रखा वास टेबल को पैरों से हिला कर गिरा देती है जिसकी आवाज़ से श्वेता चौंकते हुए सम्मोहन से बाहर आ जाती है..
श्वेता, रंजना को खिड़की के पास खड़ा देख हैरानी के भाव से उससे पूछती है “माँ-सा! हम यहाँ क्या कर रहे हैं? हम यहाँ कब...” कह श्वेता चुप हो जाती है। श्वेता के चेहरे पर बेचैनी देख रंजना अपने डर को छिपा लेती है और खुद को सामान्य करते हुए कहती है “बेटा आप यहाँ ये वास गिरने पर डायनिंग से उठकर आ गई थी..”
“लेकिन माँ-सा हमें कुछ याद क्यों नहीं आ रहा।” श्वेता खोई-खोई सी रंजना से कहती है।
Gunjan Kamal
28-Sep-2023 08:11 AM
बेहतरीन भाग
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